पात्र गृहस्थी कार्ड है न जॉब कार्ड, कोरोना के खौफ के बीच सता रही भूख
कोरोना संक्रमण का डर तो है ही पर अब भूख भी सताने लगी है। लॉकडाउन की वजह से काम नहीं मिल रहा है। सुबह काम मिल जाता था तो शाम तक 500 रुपये दिहाड़ी बन जाती थी। दो वक्त की रोटी मिल जाती थी और परिवार के भरण-पोषण का जुगाड़ भी हो जाता था पर लॉकडाउन में सब कुछ ठप हो गया है। अब दूसरों की दी गई पूड़ी-सब्जी और तहरी के सहारे ही दिन बीत रहा है।
लॉकडाउन की वजह से शहर में फंसे मजदूर यही हालात बयां कर रहे हैं। नींद खुलते ही उन्हें चिंता सताने लग रही है कि आज दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कैसे हो पाएगा। बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी राजेश्वर पांच साल से गोरखपुर में रहक रिक्शा चलाते हैं। दिन भर पसीना बहाकर वह 400 से 500 रुपये कमा लेते थे। वह सुबह-शाम खा-पीकर इतने पैसे बचा लेते थे कि घर वालों को भी रोटी चलती रहती थी। महीना-दो महीने में गांव चले जाते थे और बीवी-बच्चों से मिल आते थे। लॉकडाउन की वजह से गोरखपुर में ही फंस गए हैं। अब रुपये भी नहीं बचे हैं। वह छात्रसंघ चौराहे के पास रहते हैं। दिन भर उम्मीद भरी नजरों से लोगों को देखते रहते हैं।
महराजगंज के नौतनवां निवासी मजदूर छोटेलाल का भी हाल है। छोटेलाल शहर में मजदूरी करते थे। सुबह वह शहर की किसी मजदूर मंडी में चले जाते थे और कोई न कोई काम मिल जाता था। जनता कर्फ्यू के दिन उन्हें काम मिल गया था। देर शाम तक वह काम करते रह गए। यही वजह है कि लॉकडाउन होने पर वह गांव नहीं लौट पाए। अब वह छात्रसंघ चौराहे पर रिक्शा चालक राजेश्वर के साथ ही बैठे रहते हैं। छोटेलाल का कहना है कि लॉकडाउन खुलते ही गांव चले जाएंगे। दो पैसा कम सही, वहीं मेहनत करेंगे, पसीना बहाएंगे और परिवार की रोटी का जुगाड़ करेंगे।
छोटेलाल के ही कस्बे के राजू भी गोरखपुर में रिक्शे के सहारे गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे थे। लॉकडाउन में सब कुछ डाउन हो गया है। अब उनके सामने रोटी के लाले पड़ गए हैं। कुशीनगर जिला निवासी छोटेलाल की भी दिनचर्या भी राजू जैसी ही थी। वह भी शहर में रिक्शा चलाते थे। अब लॉक डाउन में फंस गए हैं। लोग आ रहे हैं और इन्हें पूड़ी-सब्जी या तहरी दे जा रहे हैं। वही खाकर ये लोग दिन बिता रहे हैं।
सोशल डिस्टेंसिंग जानते हैं ये मजदूर
लॉकडाउन में ये सभी मजदूर छात्रसंघ चौराहे के पास बने सुलभ शौचालय के निकट रह रहे हैं। इन मजदूरों को सोशल डिस्टेंसिग के बारे में जानकारी है। ये बाकायदा इसका पालन भी कर रहे हैं। यह अपनी चद्दर एक-दूसरे से दो-दो मीटर की दूरी पर ही बिछा रहे हैं।
हम तक भी राहत पहुंचाए प्रशासन
लॉकडाउन की वजह से यहां फंसे दूसरे जिलों और प्रदेशों के मजदूरों ने जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है। इनका कहना है कि उनके पास कोई ऐसा प्रमाणपत्र नहीं है जिस पर उन्हें शासन की योजनाओं का लाभ मिल सके। उनके पास न तो पात्र गृहस्थी कार्ड है और न ही जॉब कार्ड।