चिंताजनक: कोरोना वायरस के लिए साफ्ट टारगेट हैं दो लाख गोरखपुरिये
गोरखपुर में कोरोना वायरस की आहट ने स्वास्थ्य विभाग को बेचैन कर दिया है। फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे करीब दो लाख लोग कोरोना वायरस के लिए साफ्ट टारगेट हो सकते हैं। ये सभी सीओपीडी और टीबी के मरीज हैं।
प्रदेश में क्षय रोग(टीबी) मरीजों के संख्या के लिहाज से गोरखपुर पहले पांच शहरों में शुमार हैं। जिले में ही हर साल आठ से 10 हजार नए मरीज की पहचान होती है। बीते 10 सालों में करीब 70 हजार मरीजों की पहचान हो चुकी है। टीबी का बैक्टीरिया फेफड़ों पर असर करता है। इस बीमारी के शिकार मरीज के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। कुछ मामलों में फेफड़े खराब हो जाते हैं।
तीन फीसदी आबादी है सीओपीडी की शिकार
क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज(सीओपीडी) सांस की सबसे जानलेवा बीमारी बन चुकी है। इसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। धूल, धुआं और प्रदूषण के कारण मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जिले की करीब तीन फीसदी आबादी सीओपीडी की शिकार है।
लाचार हो गए फेफड़े
टीबी व सीओपीडी का सीधा असर श्वसन तंत्र और फेफड़े पर पड़ता है। इन दोनों बीमारियों के कारण फेफड़े खराब हो जाते हैं। उनकी संकुचन क्षमता कम हो जाती है। कुछ मरीजों की मौत तो फेफड़े खराब होने की वजह से होती है। टीबी से उबरने वाले मरीजों के फेफड़े भी पूरी तरह ठीक नहीं होते हैं। सीओपीडी तो लाइलाज बीमारी है।
फेफड़े पर असर डालता है कोरोना वायरस
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट के विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि वायरस के संक्रमण का सीधा असर श्वसन तंत्र और फेफड़े पर ही होता है। यह वायरस फेफड़े के संकुचन को प्रभावित करता है। मरीज ठीक से सांस नहीं ले पाता। उसकी सांस फूलने लगती है। जिससे उसकी मौत हो जाती है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर कोरोना वायरस व्यक्ति से व्यक्ति के संपर्क होने से फैलता है। फेफड़े से की बीमारी से जूझ रहे मरीज सॉफ्ट टारगेट हैं।
टीबी मरीजों को बचाएगा मास्क
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. रामेश्वर मिश्रा ने बताया गया टीबी मरीजों में इम्यूनिटी कम होती है। फेफड़े कमजोर होते हैं। ऐसे में संक्रमित होने पर उनकी हालत नाजुक हो सकती है। ऐसे मरीजों की मृत्यु दर अधिक होगी। हालांकि अच्छी बात यह है कि इस समय ज्यादातर लोग मास्क पहन रहे हैं। इससे संक्रमण का खतरा कम हुआ है।
धूम्रपान करने वाले हैं कोरोना की जद में
सामान्य लोगों की तुलना में धूम्रपान करने वाले लोगों में कोरोना का खतरा अधिक है। उन पर कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक है। यह कहना है महानगर के चेस्ट चेस्ट फिजीशियन का डॉ. रत्नेश तिवारी का। उन्होंने बताया कि धूम्रपान करने से नाक व गले से फेफड़े तक जा रही नली पर सीधा असर होता है। सिगरेट, बीड़ी, सिगार या हुक्का के धुएं से निकलने वाला कार्बन इस नली में चिपक जाता है। यहीं पर कोरोना वायरस अपनी कॉलोनी बनाता है। यह उसके लिए आदर्श स्थिति बनाता है। ऐसे मरीजों में संक्रमण तेजी से बढ़ता है। मरीज के फेफड़े भी कमजोर होते हैं। इससे संक्रमित व्यक्ति की हालत बिगड़ सकती हैं।